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ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
अलीम मसरूर
ग़ज़ल
हँसी आई तो है बे-कैफ़ सी लेकिन ख़ुदा जाने
मुझे मसरूर पा कर मेरे ग़म-ख़्वारों पे क्या गुज़री
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
बहुत मसरूर हैं वो छीन कर दिल का सुकूँ 'उनवाँ'
हुजूम-ए-ग़म में भी मुझ को हँसी आई तो क्या होगा
उनवान चिश्ती
ग़ज़ल
किताबों की हैं ये बातें किताबों ही में रहने दो
कोई मुफ़्लिस कभी मसरूर हो ऐसा नहीं होता
अम्बर खरबंदा
ग़ज़ल
अपनी अपनी जगह पर दोनों बे-बस भी मसरूर भी हैं
तुम तहरीर-ए-संग हुए हम भूला हुआ इक़रार हुए
बशर नवाज़
ग़ज़ल
है दिल-ए-मसरूर-ए-'हसरत' इक तरब-ज़ार-ए-उमीद
फूँक डाले गर न इस गुलशन को नार-ए-इंतिज़ार
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
जो अपने यार के जौर-ओ-जफ़ा में हैं मसरूर
उन्हें फिर और के मेहर-ओ-वफ़ा से क्या मतलब