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ग़ज़ल
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बता मुझ को तरीक़ा ऐ शब-ए-ग़म साल कटने का
कोई बारा महीने तीस दिन क्या कर के दिन काटे
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
महीनों हाथ जोड़े की ख़ुशामद बार-हा बरसों
इन्हें झगड़ों में मुझ को हो गए ऐ बेवफ़ा बरसों