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ग़ज़ल
बने न हम जो मिनिस्टर तो ग़म नहीं 'वाहिद'
हमारे साथ में चमचों का इज़्दिहाम तो है
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
मिनिस्टर हों कि चपरासी वो अच्छा हो नहीं सकता
कि पब्लिक के लिए मक्कारियाँ दोनों तरफ़ से हैं