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ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
हर इक मुफ़्लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
कोई चेहरा भी पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
वसी शाह
ग़ज़ल
हमारा लाशा बहाओ वर्ना लहद मुक़द्दस मज़ार होगी
ये सुर्ख़ कुर्ता जलाओ वर्ना बग़ावतों का अलम बनेगा
उमैर नजमी
ग़ज़ल
शेयर-बाज़ार में क़ीमत उछलती गिरती रहती है
मगर ये ख़ून-ए-मुफ़्लिस है कभी महँगा नहीं होगा
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
कोई ऐ 'ख़ुमार' उन को मिरे शे'र नज़्र कर दे
जो मुख़ालिफ़ीन मुख़्लिस नहीं मो'तरिफ़ ग़ज़ल के
ख़ुमार बाराबंकवी
ग़ज़ल
सँभाला होश जब हम ने तो कुछ मुख़्लिस अज़ीज़ों ने
कई चेहरे दिए और एक पत्थर की ज़बाँ हम को