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ग़ज़ल
हरीफ़-ए-वहशत-ए-नाज़-ए-नसीम-ए-इश्क़ जब आऊँ
कि मिस्ल-ए-ग़ुंचा साज़-ए-यक-गुलिस्ताँ दिल मुहय्या हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सरों के ख़ुम सुराही गर्दनों की जाम ज़ख़्मों के
मुहय्या जब ये हो लेते हैं तब मय-ख़ाना बनता है
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है
सब मुहय्या है जो इस हंगाम के शायाँ है शय
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मुहय्या ऐश-ओ-इशरत का असासा है हमें यूँ तो
मगर इस में खिलौनों का ख़ज़ाना छूट जाता है
अन्जुमन मंसूरी आरज़ू
ग़ज़ल
क्यूँ साज़-ओ-बर्ग-ए-हस्ती करता है तू मुहय्या
दुनिया को है अज़ल से ज़ौक़-ए-फ़ना-परस्ती
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
जहाँ में हर तरफ़ सामान-ए-इशरत भी मुहय्या है
सबब क्या है मिरी ग़म की फ़रावानी नहीं जाती