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ग़ज़ल
लख़्त-ए-दिल खाने को है ख़ून-ए-जिगर पीने को है
मेज़बान-ए-दहर ने की ख़ूब मेहमानी मिरी
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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लख़्त-ए-दिल खाने को है ख़ून-ए-जिगर पीने को है
मेज़बान-ए-दहर ने की ख़ूब मेहमानी मिरी