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ग़ज़ल
ये मेराज-ए-कमाल-ए-बे-ख़ुदी-ए-शौक़ ही कहिए
जिधर सज्दा किया मैं नै उधर ही आस्ताँ बदला
रज़ी बदायुनी
ग़ज़ल
चली ख़िरद की न कुछ आगही ने साथ दिया
रह-ए-जुनूँ में फ़क़त बे-ख़ुदी ने साथ दिया
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
जब निगाहें उठ गईं अल्लाह-री मेराज-ए-शौक़
देखता क्या हूँ वो जान-ए-इंतिज़ार आ ही गया
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
यूँ तो इख़्लास में इस के कोई धोका भी नहीं
कब बदल जाए मगर इस का भरोसा भी नहीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
हमें ले आया जज़्ब-ए-शौक़ उस मेराज-ए-उल्फ़त पर
मयस्सर आ गया है नक़्श-बर-दीवार हो जाना
जौहर ज़ाहिरी
ग़ज़ल
रहीन-ए-बीम-ए-हस्ती है दिल-ए-दीवाना बरसों से
हवा की ज़द में है अपना चराग़-ए-ख़ाना बरसों से