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ग़ज़ल
ये मिसरा लिख दिया किस शोख़ ने मेहराब-ए-मस्जिद पर
ये नादाँ गिर गए सज्दों में जब वक़्त-ए-क़याम आया
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
नस्ब करें मेहराब-ए-तमन्ना दीदा ओ दिल को फ़र्श करें
सुनते हैं वो कू-ए-वफ़ा में आज करेंगे नुज़ूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
वो तिरे जिस्म की क़ौसें हों कि मेहराब-ए-हरम
हर हक़ीक़त में मिला ख़म तिरी अंगड़ाई का
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
न मेहराब-ए-हरम समझे न जाने ताक़-ए-बुत-ख़ाना
जहाँ देखी तजल्ली हो गया क़ुर्बान परवाना
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
इस कशाकश में कहाँ जाँ के लिए जा-ए-अमाँ
दिल है मेहराब-ए-हरम मैं ख़म-ए-अबरू दिल पर
सय्यद अमीन अशरफ़
ग़ज़ल
देखूँगा मेहराब-ए-हरम याद आएगी अबरू-ए-सनम
मेरे जाने से मस्जिद भी बुत-ख़ाना बन जाएगी
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
यादों से तिरी रौशन मेहराब-ए-शब-ए-हिज्राँ
ढूँढेंगे तुझे कब तक क़िंदील-ए-क़मर ले कर
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
वाइज़ ने जो फ़रमाया था मेहराब-ए-हरम में
रिंदों से वो क्यूँ साक़ी-ए-मय-ख़ाना कहा जाए