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ग़ज़ल
ब-रंग-ए-बू-ए-गुल उस बाग़ के हम आश्ना होते
कि हमराह-ए-सबा टुक सैर करते फिर हवा होते
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
फ़रहत-ए-बू-ए-समन निकहत-ए-रैहान-ए-ग़ज़ल
तुझ से रौशन है मिरी शम्अ'-ए-शबिस्तान-ए-ग़ज़ल
अयाज़ आज़मी
ग़ज़ल
नहीं हवा में ये बू नाफ़ा-ए-ख़ुतन की सी
लपट है ये तो किसी ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन की सी
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
फ़ज़ा में बू-ए-गुल-ए-मुश्क-बार है कि नहीं
हवा के दोष पे पैग़ाम-ए-यार है कि नहीं
लुत्फुल्लाह खां नज़्मी
ग़ज़ल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
बू-ए-गुल पत्तों में छुपती फिर रही थी देर से
ना-गहाँ शाख़ों में इक दस्त-ए-सबा रौशन हुआ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बिखरे हैं फूल इधर तो धरे हैं उधर को जाम
है बू-ए-इत्र-ए-फ़ित्ना तिरी ख़्वाब-गाह में
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
ये रंग-ओ-बू के तिलिस्मात किस लिए हैं 'सुरूर'
बहार क्या है जुनूँ की जो परवरिश ही नहीं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
न रहा धुआँ न है कोई बू लो अब आ गए वो सुराग़-जू
है हर इक निगाह गुरेज़-ख़ू पस-ए-इश्तिआ'ल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
इश्क़ पर दाना नहीं मोहताज-ए-तहरीक-ए-जमाल
जलने वाला जल बुझेगा शम-ए-सोज़ाँ देख कर
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
आरज़ू कब कोई मोहताज-ए-बयाँ होती है
ख़ामुशी ख़ुद ही मोहब्बत की ज़बाँ होती है