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ग़ज़ल
तर्क इन दिनों जो यार से गुफ़्त-ओ-शुनीद है
हम को मोहर्रम और रक़ीबों को ईद है
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
बचपन याद के रंग-महल में कैसे कैसे फूल खिले
ढोल बजे और आँसू टपके कहीं मोहर्रम होने लगा
अब्दुल हमीद
ग़ज़ल
कोई रंज-ओ-अलम आए न दिल के पास ऐ साक़ी
जो हो आग़ाज़-ए-मय-नोशी मोहर्रम के महीने से