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ग़ज़ल
बंदा-ए-मोहर-ब-लब हूँ मैं सना-ख़्वाँ तेरा
दिल में रहता है मुक़फ़्फ़ल ग़म-ए-पिन्हाँ तेरा
जोश मलसियानी
ग़ज़ल
चुप है वो मोहर-ब-लब मैं भी रहूँ अच्छा है
हल्का हल्का ये मोहब्बत का फ़ुसूँ अच्छा है
शानुल हक़ हक़्क़ी
ग़ज़ल
कलियाँ चमन में मोहर-ब-लब हैं उदास हैं
तेरे बग़ैर जान-ए-गुलिस्ताँ तिरे बग़ैर
राजा अब्दुल ग़फ़ूर जौहर निज़ामी
ग़ज़ल
ज़िंदाँ में तो मैं मोहर-ब-लब ही रहा मगर
झंकार बन के पाँव की ज़ंजीर बोल उठी
साहबज़ादा मीर बुरहान अली खां कलीम
ग़ज़ल
ज़ात-कदे में पहरों बातें और मिलीं तो मोहर ब-लब
जब्र-ए-वक़्त ने बख़्शी हम को अब के कैसी मजबूरी
मोहसिन भोपाली
ग़ज़ल
वो फ़ित्ना-ए-महशर है मगर मोहर-ब-लब है
जैसे हो कोई मोम की गुड़िया मिरे आगे