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ग़ज़ल
तू ऐ मौला-ए-यसरिब आप मेरी चारासाज़ी कर
मिरी दानिश है अफ़रंगी मिरा ईमाँ है ज़ुन्नारी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मुझ को ऐ 'शारिब' फ़िशार-ए-क़ब्र का क्या ख़ौफ़ हो
मैं ग़ुलाम-ए-शाह-ए-यसरिब मैं ग़ुलाम-ए-बू-तुराब
शारिब लखनवी
ग़ज़ल
वो दाना-ए-सुबुल ख़त्मुर-रुसुल मौला-ए-कुल जिस ने
ग़ुबार-ए-राह को बख़्शा फ़रोग़-ए-वादी-ए-सीना
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
डरते डरते तिरी रहमत का सहारा ले कर
तेरे दरबार में मौला ये ग़ुलाम आया है