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ग़ज़ल
रंग हवा से छूट रहा है मौसम-ए-कैफ़-ओ-मस्ती है
फिर भी यहाँ से हद्द-ए-नज़र तक प्यासों की इक बस्ती है
राही मासूम रज़ा
ग़ज़ल
'मीर-तक़ी' के रंग का ग़ाज़ा रू-ए-ग़ज़ल पर आ न सका
'कैफ़' हमारे 'मीर-तक़ी' का रंग उड़ाया लोगों ने
कैफ़ भोपाली
ग़ज़ल
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
कैफ़ इक्रामी
ग़ज़ल
मौसम-ए-गर्मा की आमद मिरे सहराओं में 'कैफ़'
'ऐन मुमकिन है दरख़्तों पे ख़ज़ाने लग जाएँ