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ग़ज़ल
फिर आज मौसम-ए-हिज्राँ पे छाए अब्र-ए-विसाल
ज़मीन-ए-दिल से उठे इंतिज़ार की ख़ुशबू
रियासत अली असरार
ग़ज़ल
मौसम-ए-हिज्राँ में ये बारिश ये ख़ुशबू ये घटा
क्या ये कुछ कम था के हम फूलों का खिलना सह गए
प्रियंवदा इल्हान
ग़ज़ल
मुझे है सदमा-ए-हिज्राँ अदू को सैकड़ों ख़ुशियाँ
मिरे उजड़े हुए घर को भरी महफ़िल से क्या निस्बत
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-हिज्राँ ग़म-ए-याराँ
ये सारे ग़म हमेशा मुझ से हम-आग़ोश रहते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ
किस के लब पर देखना हर्फ़-ए-दुआ रौशन हुआ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
मैं अब अपना जिस्म नहीं हूँ सिर्फ़ तुम्हारा साया हूँ
मौसम की ये बर्फ़ पिघलते एक ज़माना बीत गया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
सर के ऊपर ख़ाक उड़ी तो सब दिल थाम के बैठ गए
ख़बर नहीं थी गुज़र चुका है मौसम अब्र-ए-नवाज़िश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
मुझे क्यूँ अज़ीज़-तर है ये धुआँ धुआँ सा मौसम
ये हवा-ए-शाम-ए-हिज्राँ मुझे रास है तो क्यूँ है
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
मौसम-ए-हिजरत में जो अपनों से बेगाने रहे
वो शब-ए-ज़ुल्मत में कितने जाने पहचाने रहे