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ग़ज़ल
राह-ए-वफ़ा में हम ने 'वफ़ा' जब अपना सब कुछ वार दिया
तब जा कर इस दश्त-ए-जुनूँ में आए हैं समझाने लोग
वफ़ा सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
न रख ऐ दिल तू उम्मीद-ए-वफ़ा इन बे-वफ़ाओं से
ख़ुदा से है वो बेगाना जो बुत को आश्ना जाने
इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
ग़ज़ल
फिर आज अहल-ए-जौर को शिकस्त-ए-फ़ाश हो गई
फिर आज अहल-ए-दिल ने परचम-ए-'वफ़ा' उठा लिया