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ग़ज़ल
अपना पता मुझे बता बहर-ए-ख़ुदा तू कौन है
तुझ पे हैं सारे मुब्तला बहर-ए-ख़ुदा तू कौन है
यासीन अली ख़ाँ मरकज़
ग़ज़ल
वो सारे लोग रंज-ओ-ग़म से पा जाते हैं आज़ादी
जो सुब्ह-ओ-शाम विर्द-ए-सूरा-ए-यासीन लेते हैं
फैज़ुल अमीन फ़ैज़
ग़ज़ल
मैं तुम को पूजता रहा जब तक ख़ुदी में था
अपना मिला सुराग़ मुझे बे-ख़ुदी के बा'द
मीर यासीन अली ख़ाँ
ग़ज़ल
निकल आओ ग़म-ए-ज़ब्त-ए-अलम से आज फिर 'यासीन'
मज़ालिम ढाने वालों से बग़ावत भी ज़रूरी है
यासीन बरारी
ग़ज़ल
ग़फ़लत अजब है हम को दम जिस का मारते हैं
मौजूद है नज़र में जिस को पुकारते हैं
यासीन अली ख़ाँ मरकज़
ग़ज़ल
बुराई इस क़दर दुनिया में बढ़ती जाए है 'यासीन'
जिधर देखो उधर मयख़ाने ही मयख़ाने लगते हैं
यासीन बरारी
ग़ज़ल
किस के जल्वों ने दिखाई वादी-ए-उल्फ़त मुझे
खींचे है इक भोली-भाली साँवली सूरत मुझे