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ग़ज़ल
कहाँ ये चाँद कहाँ तेरा हुस्न-ओ-रंग-ए-जमाल
तिरे बदन की तरह इस का ढाल थोड़ई है
सुलैमान फ़राज़ हसनपूरी
ग़ज़ल
क्या सुनाएँ हम शिकस्त-ए-दिल का अफ़्साना 'जमाल'
ये वो शीशा है जो हर पत्थर से टकराया गया
जमाल नक़वी
ग़ज़ल
वो वक़्त भी था हम को ज़माने की ख़बर थी
अब यूँ है कि एहसास-ए-रग-ए-जाँ भी नहीं है
राशिद जमाल फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
दर-हक़ीक़त ग़म अगर है ग़म मुझे ये है 'जमाल'
जिन पे तकिया था वो पत्थर बाम-ओ-दर से गिर गए
जमाल हाश्मी
ग़ज़ल
ये 'जमाल' मय-कदा है नहीं याँ कोई तकल्लुफ़
ओ अरब अजम के झगड़े न हसब नसब न ज़ातें