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ग़ज़ल
दुनिया रक्खे चाहे फेंके ये है पड़ी ज़म्बील-ए-सुख़न
हम ने जितनी पूँजी जोड़ी रत्ती रत्ती छोड़ चले
क़ैसर-उल जाफ़री
ग़ज़ल
मैं ने रत्ती-भर निज़ाम-ए-फ़िक्र को बदला नहीं
मुनहसिर अफ़्कार सब इदराक पर हैं आज भी
ज़मीर अतरौलवी
ग़ज़ल
तुम्हारा प्यार है न जो सुनो रत्ती बराबर है
ये ख़ुद ही देख लो तोले को माशा कौन करता है
अली रज़ा रज़ी
ग़ज़ल
पल में रत्ती पल में माशा पल में राई का पहाड़
पक चुके हैं कान सुन सुन कर सियासी गुफ़्तुगू
शाहिद जमाल
ग़ज़ल
चाह पाने की नहीं खोने का कुछ डर भी नहीं
ग़म जुदाई का मुझे रत्ती बराबर भी नहीं
वाजिद हुसैन साहिल
ग़ज़ल
सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता