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ग़ज़ल
हर लम्हा घमसान का रन है कौन अपने औसान में है
कौन है ये? अच्छा तो मैं हूँ लाश तो हाँ इक यार गिरी
जौन एलिया
ग़ज़ल
रन-खन पड़ेंगे जब कहीं दिखलाएगा वो शक्ल
बे-किश्त-ए-ख़ूँ हुई ये मुहिम हो के सर नहीं
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
किसी रन में साथ हुसैन का दें किस नहर से पानी ले आएँ
इस शहर के सारे नौहागर कोई ऐसी भूल नहीं करते
असअ'द बदायुनी
ग़ज़ल
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
'रज़ा' वो रन पड़ा कल शब ब-रज़्म-ए-गाह-ए-जुनूँ
कुलाहें छोड़ के सब लोग सर बचाने लगे