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ग़ज़ल
नबी सदक़े रयन सारी दो तन जूँ शम्अ जलती थी
जो तारे के नमन रही थी 'क़ुतुब' शह चाँद सूँ मिल में
क़ुली क़ुतुब शाह
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
तुझ से दूरी दूरी कब थी पास और दूर तो धोका हैं
फ़र्क़ नहीं अनमोल रतन को खो कर फिर से पाने में
मीराजी
ग़ज़ल
तेग़ मुंसिफ़ हो जहाँ दार-ओ-रसन हों शाहिद
बे-गुनह कौन है उस शहर में क़ातिल के सिवा
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
खिंचते जाते हैं रसन-बस्ता ग़ुलामों की तरह
जिस तरफ़ क़ाफ़िला-ए-उम्र-ए-रवाँ खेंचता है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
हर लम्हा घमसान का रन है कौन अपने औसान में है
कौन है ये? अच्छा तो मैं हूँ लाश तो हाँ इक यार गिरी
जौन एलिया
ग़ज़ल
सहरा ज़िंदाँ तौक़ सलासिल आतिश ज़हर और दार ओ रसन
क्या क्या हम ने दे रखे हैं आप के एहसानात के नाम