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ग़ज़ल
मुख पर रूप से धूप का आलम बाल अँधेरी शब की मिसाल
आँख नशीली बात रसीली चाल बला की बाँकी है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
पी गया तिश्ना-दहानी में ख़ुदा जाने मैं क्या
क्यों रसीली आँख से वो आग भड़काने चले
अल-हाज अल-हाफीज़
ग़ज़ल
अंगड़ाई की मेहराबों में रंग-ए-धनक वो क्यूँ न भरें
जिन की हर हर बात रसीली जिन की हर हर अदा नमक
राम प्रकाश राही
ग़ज़ल
कैसी रसीली कैसी कटीली ओक पे अपनी प्यासी नज़र थी
जूँ गन्ने की पोरें देखीं और पोरों में लीमूँ देखा
यासिर इक़बाल
ग़ज़ल
लाएँगे कहाँ से बोल रसीले होंटों की नादारी में
समझो एक ज़माना गुज़रा बोसों की इमदाद हुए
जौन एलिया
ग़ज़ल
ज़िद्दी वहशी अल्लहड़ चंचल मीठे लोग रसीले लोग
होंट उन के ग़ज़लों के मिसरे आँखों में अफ़्साने थे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
धुँद में डूबी सारी फ़ज़ा थी उस के बाल भी गीले थे
जिस की आँखें झीलों जैसी जिस के होंट रसीले थे