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ग़ज़ल
मुझ को हीर सयाल से मतलब और न राँझे से कुछ काम
तोड़ के बंधन रस्मों का तुम आ जाओ तो बात बने
फ़रहत शहज़ाद
ग़ज़ल
सच-मुच अपने राँझे को ही घाइल कर के छोड़ दिया
अच्छा-ख़ासा लड़का तू ने पागल कर के छोड़ दिया
ज्ञानेंद्र विक्रम
ग़ज़ल
'आज़िम' प्यार की नगरी से कुछ ख़्वाब चुरा कर ले आओ
उस नगरी में सुनते हैं कुछ राँझे हैं कुछ हीरें हैं