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ग़ज़ल
किसी और ग़म में इतनी ख़लिश-ए-निहाँ नहीं है
ग़म-ए-दिल मिरे रफ़ीक़ो ग़म-ए-राएगाँ नहीं है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
नोशी गिलानी
ग़ज़ल
चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो
कोई रिश्ता ज़रा सी ज़िद की ख़ातिर राएगाँ क्यूँ हो
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
ख़ुलूस जिस में हो शामिल वो दौर-ए-इश्क़-ओ-हवस
न राएगाँ कभी गुज़रा न राएगाँ गुज़रे