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ग़ज़ल
ये जान कर भी कि लंदन पे 'राज' है उस का
तू मेरी मान ले उस पर यूँ इख़्तियार न कर
इल्यास राज भट्टी
ग़ज़ल
जफ़ा-ए-चर्ख़ कज-बुनियाद को राहत समझता हूँ
दलील-ए-राह-ए-इरफ़ाँ हर मुसीबत होती जाती है
राज़ चाँदपुरी
ग़ज़ल
किसी के हुस्न की होती है मुद्दत से कसक दिल में
मगर समझे नहीं ऐ 'राज़' ये राज़-ए-निहाँ अब तक
बशीरुद्दीन राज़
ग़ज़ल
बशीरुद्दीन राज़
ग़ज़ल
ये रंग-ए-शेर-गोई राज़ ये तर्ज़-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी
तिरी फ़ितरत हक़ीक़त-आश्ना मा'लूम होती है
राज़ चाँदपुरी
ग़ज़ल
राज़-ए-वहशत पूछते हो क्या हमारा 'राज़' तुम
बारहा लौट आए हैं जा जा के हम क़ातिल के पास
बशीरुद्दीन राज़
ग़ज़ल
ख़याल-ए-दोस्त ख़िज़्र-ए-राह है दश्त-ए-मोहब्बत में
जुनूँ हमराह ले जाता रहा है रहनुमा हो कर