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ग़ज़ल
हया इख़्फ़ा-ए-राज़-ए-दिल की इक तदबीर होती है
नज़र झुकती है वो जिस में कोई तहरीर होती है
अर्शद बिजनौरी
ग़ज़ल
दिल भर आया फिर भी राज़-ए-दिल छुपाना ही पड़ा
सामने उस बद-गुमाँ के मुस्कुराना ही पड़ा
अंजुम मानपुरी
ग़ज़ल
ये देखें राज़-ए-दिल अब कौन करता है अयाँ पहले
नज़र करती है इज़हार-ए-मोहब्बत या ज़बाँ पहले
अर्श सहबाई
ग़ज़ल
किसी से राज़-ए-दिल कहना ये ख़ू रुस्वा कराती है
तिरी ये बात तन्हाई में पैहम याद आती है
मोनिका सिंह
ग़ज़ल
हुआ जाता है पिन्हाँ राज़-ए-दिल मेरा अयाँ हो कर
दहान-ए-ज़ख़्म पचताते हैं क्या क्या बे-ज़बाँ हो कर
रासिख़ दहलवी
ग़ज़ल
क्या ख़बर थी राज़-ए-दिल अपना अयाँ हो जाएगा
क्या ख़बर थी आह का शोला ज़बाँ हो जाएगा
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
ग़ज़ल
राज़-ए-दिल जो आदमी दिल में छुपा सकता नहीं
वो किसी को राज़दाँ अपना बना सकता नहीं