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ग़ज़ल
उस के ख़ाली-पन को भी भरने की सोचें ऐ 'नियाज़'
वैसे तो राशन का हर डिब्बा भरा छोड़ आए हैं
नियाज़ जयराजपुरी
ग़ज़ल
ग़रज़ घबरा उठे अल्लह-मियाँ भी इस करप्शन से
मिलेगा हुस्न भी तक़्सीम हो कर अब तो राशन से
शाम लाल रोशन देहलवी
ग़ज़ल
रुख़-ए-रौशन से नक़ाब अपने उलट देखो तुम
मेहर-ओ-मह नज़रों से यारों की उतर जाएँगे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह ओ दमन
मुझ को फिर नग़्मों पे उकसाने लगा मुर्ग़-ए-चमन