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ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
उन से कहिए भी तो कहिए हाल-ए-दिल क्या ऐ 'कँवल'
जो हमारी हर हक़ीक़त को इक अफ़्साना कहें
कँवल एम ए
ग़ज़ल
मिरा माज़ी नज़र आया मुझे हाल-ए-हसीं हो कर
जो उन के साथ देखे थे वो मंज़र याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
पुर्सान-ए-हाल कब हुई वो चश्म-ए-बे-नियाज़
जब भी गिरे हैं ख़ुद ही सँभलते रहे हैं हम
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
हैं किसी इशारे के मुंतज़िर कई शहसवार खड़े हुए
कि हो गर्म फिर कोई मा'रका मिरे ज़ब्त-ए-हाल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
नहीं अच्छा ज़बान-ए-हाल से आह-ओ-बुका टपकें
अभी माज़ी के लब पर ही है कुछ शोर-ए-फ़ुग़ाँ बाक़ी
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
जिन पे बारिश-ए-गुल है उन का हाल क्या होगा
ज़ख़्म खाने वाले भी बाग़ बाग़ हैं यारो
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
इलाही दर्द-ए-ग़म की सरज़मीं का हाल क्या होता
मोहब्बत गर हमारी चश्म-ए-तर से मेंह न बरसाती
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
अगर ज़बाँ से बयाँ हाल-ए-ग़म न हो पाया
हुज़ूर-ए-दोस्त मिरी ख़ामुशी ने साथ दिया