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ग़ज़ल
सलीम कौसर
ग़ज़ल
मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया
थम ऐ रह-रौ कि शायद फिर कोई मुश्किल मक़ाम आया
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दुआ-ए-नीम-शब आह-ए-सहर सोज़-ए-दरूँ दिल का
मसीहा भी है मोनिस भी है मरहम भी है बिस्मिल का
राशिदउल्लाह खां जौहर
ग़ज़ल
होने को है तुलूअ' मिरा महर-ए-नीम-शब
वो रात क्या 'बशीर' जो ख़ुद ही सहर न हो
सय्यद बशीर हुसैन बशीर
ग़ज़ल
सुकूत-ए-नीम-शब की आहटें और रात का जादू
ये मंज़र साथ ले आया तिरी दिलदारियाँ क्या क्या
साजिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
धज्जी धज्जी हो रहा था माहताब-ए-नीम-शब
टुकड़े टुकड़े हो रही थी रात कोहसारों के बीच