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ग़ज़ल
'इश्क़ वो 'इल्म-ए-रियाज़ी है कि जिस में फ़ारिस
दो से जब एक निकालें तो सिफ़र बचता है
रहमान फ़ारिस
ग़ज़ल
मैं रियाज़ी की तरह लगता हूँ मुश्किल लेकिन
थोड़ी कोशिश से मैं आसान भी हो जाता हूँ
अहमद कमाल हशमी
ग़ज़ल
रियाज़ी फ़ल्सफ़ा साइंस ये भी ठीक है लेकिन
कहाँ हम अपने बच्चों को मगर उर्दू सिखाते हैं
मीम मारूफ़ अशरफ़
ग़ज़ल
गिर्या-ए-शबनम गुलों की चाक-दामानी की बात
किस ने समझा निकहत-ए-गुल की परेशानी की बात
वारिस रियाज़ी
ग़ज़ल
गुल फ़स्ल-ए-गुल में यूँ तो 'रियाज़ी' खिले मगर
पूछो न उस कली की जो खिल कर बिखर गई
रियाज़ी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
सुना तो दूँ उन्हें रूदाद-ए-ग़म अपनी 'रियाज़ी' मैं
ख़ुदा-ना-ख़्वास्ता आँख उन की भर आई तो क्या होगा
रियाज़ी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
सफ़र तन्हा ही करते हैं अदम का ऐ 'रियाज़ी' सब
न साथ अहबाब देते हैं न हमदम और हमसाए