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ग़ज़ल
मीर अली औसत रशक
ग़ज़ल
वो दिन आए मिरे सरकार अहल-ए-बज़्म से पूछें
कहाँ है क्यूँ 'रियाज़'-ए-ख़ुश-नवा अब तक नहीं आया
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
दिल है अब माँग के आग़ोश में दिन-रात 'रियाज़'
ये तो सर चढ़ के बना यार के सर का ता'वीज़
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
छलकते जाम हैं हूरें हैं बाग़-ए-जन्नत है
उड़ा रहे हैं मज़े क्या तह-ए-मज़ार निसार
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
'परवीं' रियाज़-ए-ख़ुल्द में किस किस को जाम दें
पहले से है ये साक़ी-ए-कौसर को इत्तिलाअ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
पौ फटते ही रियाज़-ए-जहाँ ख़ुल्द बन गया
ग़िल्मान-ए-महर साथ लिए आई हूर-ए-सुब्ह
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
ये 'आलम है 'रियाज़' एक एक क़तरे को तरसता हूँ
हरम में अब भरी बोतल ख़ुदा जाने कहाँ रख दी
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
कोई क्या जाए जन्नत में कि उस ने तूल खींचा है
क़यामत पर भी साया पड़ गया रोज़-ए-जुदाई का
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
वुसअत-ए-ज़ात में गुम वहदत-ओ-कसरत है 'रियाज़'
जो बयाबाँ हैं वो ज़र्रे हैं बयाबानों के
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
जन्नत भी है दोज़ख़ भी है सीने में हमारे
ये दाग़-ए-निहाँ और है ये सोज़-ए-निहाँ और
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
तब्अ' हो भी तो कहीं दीवान मेरा ऐ 'रियाज़'
देखने की चीज़ होगा ये सनम-ख़ाने के बा'द