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ग़ज़ल
मैं शहज़ादा हवा का हूँ ख़ला मेरी रियासत है
कभी मैं उड़ते उड़ते आसमाँ को फाँद जाता हूँ
अजीत सिंह हसरत
ग़ज़ल
बजा कहते हैं जो कहते हैं ये ख़िदमत से 'अज़्मत है
कि काम इंसाँ के इक दिन रियाज़त आ ही जाती है
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
बदन पर क़ीमती कपड़े सवारी बादशाहों सी
बहुत मग़रूर साहब हैं रियासत में हुकूमत में