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ग़ज़ल
तवक़्क़ुफ़ भी सफ़र का रुक्न है अब ये भी समझाएँ
कहाँ हम ने कहा तुम से कि बस चलते रहो साहब
सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद
ग़ज़ल
कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
वो जो मिल गया उसे याद रख जो नहीं मिला उसे भूल जा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
जो रुके तो कोह-ए-गिराँ थे हम जो चले तो जाँ से गुज़र गए
रह-ए-यार हम ने क़दम क़दम तुझे यादगार बना दिया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
नाम पे हम क़ुर्बान थे उस के लेकिन फिर ये तौर हुआ
उस को देख के रुक जाना भी सब से बड़ी क़ुर्बानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं