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ग़ज़ल
झुक गया दिल रूह ने सज्दा किया बे-इख़्तियार
जल्वा-गाह-ए-दिल-नवाज़-ओ-रूह-परवर है यही
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
दीदनी है हुस्न-ए-फ़ितरत पर हमारे वास्ते
ये बहार-ए-रूह-परवर है ख़िज़ाँ तेरे बग़ैर
मज़हरुल क़य्यूम मज़हर
ग़ज़ल
रूह-परवर है निगाह-ए-नाज़ क़ातिल का असर
जिस को देखा जी उठा जिस को न देखा मर गया