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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ये दुनिया है यहाँ दिल को लगाना किस को आता है
हज़ारों प्यार करते हैं निभाना किस को आता है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
सौ रूप भरे जीने के लिए बैठे हैं हज़ारों ज़हर पिए
ठोकर न लगाना हम ख़ुद हैं गिरती हुई दीवारों की तरह