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ग़ज़ल
ना-गहाँ इस रंग से ख़ूनाबा टपकाने लगा
दिल कि ज़ौक़-ए-काविश-ए-नाख़ुन से लज़्ज़त-याब था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कुछ कम नहीं हों लज़्ज़त-ए-फ़ुर्क़त से फ़ैज़-याब
हासिल अगर विसाल नहीं है तो क्या हुआ
जगन्नाथ आज़ाद
ग़ज़ल
तबीअ'त फिर से अपनी ढूँढती है ज़ाइक़ा 'सैफ़ी'
हसीं दिलकश अदाओं की भी लज़्ज़त याद आती है
हबीब सैफ़ी
ग़ज़ल
अश्क भरे हैं नैन कटोरे ग़म की लज़्ज़त यार न पूछ
इश्क़-नगर के मेहमानों की ख़ातिर क्या जलपान मिला