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ग़ज़ल
हर तरफ़ दीवार-ओ-दर और उन में आँखों के हुजूम
कह सके जो दिल की हालत वो लब-ए-गोया नहीं
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
ना-तवाँ का भला किस मुँह से मैं शिकवा करूँ
ख़ाल है याँ महर ख़ामोश लब-ए-गुफ़्तार पर
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
इन दिनों फिर तुझे 'गोया' जो है चुपकी सी लगी
फिर इरादा तरफ़-ए-मुल्क-ए-ख़मोशाँ होगा