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ग़ज़ल
कह दो मुग़न्नी से अब ठहरे ख़्वाब-आवर नग़्मे रोके रोके
कोई हमें ललकार रहा है पर्बत से मीनारों से
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
जान ले कहती हूँ ललकार के मैं तुझ से अदू
मैं ने सीखा है सदा सच की हिमायत करना
फ़हमीदा मुसर्रत अहमद
ग़ज़ल
चूँ दिलेराना कोई मुँह पे सिपर को ले कर
शेर-ए-ख़ूँ-ख़्वार को ललकार उठे और बैठे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
दबा कर दुम वो उल्टे पाँव भागा और अंदर को
अदू से जब कहा ललकार कर बाहर निकल हम ने
हमीद दिलकश खंड्वी
ग़ज़ल
आप के नारों में ललकारों में कैसे आएँगे
ज़मज़मे जो अन-कही इक प्यार की बोली में थे