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ग़ज़ल
कहाँ से लाऊँगा ख़ून-ए-जिगर उन के खिलाने को
हज़ारों तरह के ग़म दिल के मेहमाँ होते जाते हैं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ज़मीन-ए-तंग से हफ़्त आसमाँ की वुस'अत तक
मैं ढूँढ लाऊँगा तुझ को कहीं से गुज़रेगा