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ग़ज़ल
ज़ाहिर है तिरी नर्गिस-ए-मख़मूर से मस्ती
टपके है तिरे लाल-ए-मय-आशाम से लज़्ज़त
आफ़ताब शाह आलम सानी
ग़ज़ल
है सुरूर-ए-बादा-ए-रंगीं सुख़न-साज़ी मेरी
मौज-ए-बहर-ए-मय है 'शो'ला' शे'र मस्ताना मेरा
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
तुम बाग़ में जाते हो तो गुल खिलते हैं क्या क्या
फूलों को तुम्हारे रुख़-ए-ज़ेबा से ग़रज़ क्या
शंकर लाल शंकर
ग़ज़ल
सज्दे करते हैं ख़ुम-ए-मय को वुफ़ूर-ए-नश्शा में
सूरत मीना-ए-मय मद्दाह शान-ए-मय-फ़रोश
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
मय-कशों का है ख़ुदा हफ़िज़-ओ-नासिर हर दम
कश्ती-ए-मय के लिए नूह का तूफ़ाँ कैसा
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
मस्त हो दीदा-ए-मय-गूँ से ज़माना सारा
तुम जो पैमाने से आँख अपनी बदल जाने दो
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
दु'आ-ए-मय-परस्ताँ रंग लाई मो'जिज़ा हो कर
उमँड आए हैं रहमत बन के बादल देखते जाओ
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
बैत-ए-अबरू पे नए तिल में ये मज़मूँ है और
चढ़ गए रात किसी शाइ'र-ए-मय-ख़्वार के हाथ
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
परस्तार-ए-सनम हो कर जो ढूँडी राह का'बा की
क़दम बहका हुआ अपना सर-ए-मय-ख़ाना आ पहुँचा
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
इज़्न-ए-मय-नोशी है फिर साक़ी की चश्म-ए-मस्त से
हम ने तौबा तोड़ कर पीने की फिर ठानी है आज
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
ग़ज़ल
गर यही फ़स्ल-ए-जुनूँ-ज़ा है यही अब्र-ए-बहार
अज़्मत-ए-तौबा निसार-ए-मय-कशी हो जाएगी
जगत मोहन लाल रवाँ
ग़ज़ल
क्या कहूँ किस शय ने 'रौनक़' कर दिया मस्त-ए-अलस्त
था वो इक रंग-ए-मय-ए-इरफ़ाँ जो पैमाने में था
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
ये शेर-ओ-फ़न ये मय-ओ-नग़्मा ये शबाब-ओ-रबाब
ये बख़्शिशें हैं ग़म-ए-ज़िंदगी भुलाने को