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ग़ज़ल
अपने मन में चोर छुपा हो तो फिर दोष किसी का क्या है
वो ही राह-रौ वो ही रह-ज़न अपना आप लुटेरा जोगी
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
वक़्त हो रहा है फिर ज़ौ-फ़िशाँ हथेली पर
नक़्श हैं मुक़द्दर की सुर्ख़ियाँ हथेली पर