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ग़ज़ल
पैग़ाम-ए-लुत्फ़-ए-ख़ास सुनाना बसंत का
दरिया-ए-फ़ैज़-ए-आम बहाना बसंत का
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
गो 'लुत्फ'-ए-ख़ुफ़्ता-बख़्त के आओ न ख़्वाब में
लेकिन तिरे ख़याल को नित दिल में राह है
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
'लुत्फ' ये शेर कहा जिस ने अजब शाएर था
जिस के सुनने से हुए टुकड़े हज़ारों दिल के
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
ज़ख़्म दबे तो फिर नया तीर चला दिया करो
दोस्तो अपना लुत्फ़-ए-ख़ास याद दिला दिया करो
पीरज़ादा क़ासीम
ग़ज़ल
तू ने जो कुछ दिया वो दिया लुत्फ़-ए-ख़ास से
पाबंद-ए-आस्तीँ मिरा दस्त-ए-तलब रहा
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
ग़ज़ल
'मुशीर' अब हर नज़र में एक लुत्फ़-ए-ख़ास पाता हूँ
कोई इश्वा नसीब-ए-दुश्मनाँ बाक़ी न रह जाए