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ग़ज़ल
न क्यूँ अंजाम-ए-उल्फ़त देख कर आँसू निकल आएँ
जहाँ को लूटने वाले ख़ुद अपना घर लुटा बैठे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
फिर बाद-ए-सबा वो आ पहुँची फिर रंग खिला निकहत फैली
ऐ लूटने वालो अब लूटो मामूर ख़ज़ाना फूलों का
नूह नारवी
ग़ज़ल
रोज़ नए दिल लाएँ कहाँ से ऐसे तोहफ़े पाएँ कहाँ से
चाट पड़ी है तुम को दिलों की लूटने जाएँ किस का घर हम
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
तड़पने लूटने की आज उन तक भी ख़बर पहुँची
मुझे बदनाम करने को मिरे ग़म-ख़्वार फिरते हैं