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ग़ज़ल
कल तलक जो था तसव्वुर अंजुमन-आराइयों का
वो मुक़द्दर बन गया है अब मिरी तन्हाइयों का
वलीउल्लाह वली
ग़ज़ल
गली से तेरी जो टुक हो के आदमी निकले
तो उस के साया से झट बन के इक परी निकले
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
ख़ुदा जब तक न चाहे कुछ किसी से हो नहीं सकता
वली से हो नहीं सकता नबी से हो नहीं सकता