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ग़ज़ल
क़ुव्वत-ए-ज़ब्त वस्सलाम ताक़त-ए-सब्र अलविदा'अ
फिर वही इर्तिआ'श है उन की निगाह-ए-नाज़ में
तालिब बाग़पती
ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मिरा सीना हज़ारों चीख़ती रूहों का मस्कन है
वसीला हूँ मैं गूँगी हसरतों की तर्जुमानी का
ख़ुर्शीद तलब
ग़ज़ल
ग़म का सहरा न मिला दर्द का दरिया न मिला
हम ने मरना भी जो चाहा तो वसीला न मिला
साहिर होशियारपुरी
ग़ज़ल
समझता हूँ वसीला मग़फ़िरत का शर्म-ए-इस्याँ को
कि अश्कों से मिरे धुल जाएगा दामान-ए-तर मेरा