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ग़ज़ल
किसी के वादा-ए-बातिल से तस्कीं हो नहीं सकती
खिलौने दे के मुझ को दिल का बहलाना नहीं आता
अब्दुर्रशीद ख़ान कैफ़ी महकारी
ग़ज़ल
उम्र-ए-उम्मीद के दो दिन भी गिराँ थे ज़ालिम
बार-ए-फ़र्दा न तिरे वादा-ए-बातिल से उठा
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
मयस्सर हो तो क़द्रे लुत्फ़ भी नेमत है याँ यारो
किसी का वादा-ए-ऐश-ए-दवाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
ख़ाली अज़ एहसाँ नहीं ये भी कि वक़्त-ए-इज़्तिराब
ख़ुश तो हो जाते हैं तेरे वादा-ए-बातिल से हम
नसीम देहलवी
ग़ज़ल
फ़रेब-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा बहुत ही 'आरज़ी शय है
रहेंगे 'उम्र भर इस दिल पे चोटों के निशाँ बाक़ी
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
शिकवा-ए-वादा-ख़िलाफ़ी का मिला अच्छा जवाब
पेशगी रक्खी थी इक उम्मीद बर आई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
किया है वा'दा तो फिर बज़्म-ए-रक़्स में आना
न कीजियो मुझे तुम शर्मसार होली में