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ग़ज़ल
संदल जैसी रंगत पर क़ुर्बान सुनहरी धूप करूँ
रौशन माथे पर मैं वारूँ सारा हुस्न ख़ुदाई का
इरफ़ाना अज़ीज़
ग़ज़ल
उस बुर्क़े के उठने पे मैं ख़ुर्शीद को वारूँ
क्या चाँद सा मुँह काकुल-ए-शब-रंग में देखा
सय्यद अली नज़र
ग़ज़ल
दिल को करूँ निसार कि वारूँ जिगर को मैं
आँखों में दूँ जगह तिरे तीर-ए-नज़र को मैं
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
दिल को करूँ निसार कि वारूँ जिगर को मैं
आँखों में दूँ जगह तिरे तीर-ए-नज़र को मैं