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ग़ज़ल
वो शुमार-ए-माह-ओ-नुजूम हो कि ख़ुमार-ए-तर्क-ए-रुसूम हो
कोई बार सोच विचार ही का पड़ा न हो कहीं यूँ न हो
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
न हूँ मुज़्तरिब न हूँ मुतमइन है बड़ी अजीब सी कैफ़ियत
है बुलंद-तर मिरी फ़हम से कोई ऐसी सोच-विचार है
ज़हीर अब्बास सायर
ग़ज़ल
क़ुर्बानी कुछ भी प्यार है माँगे अगर ऐ दिल
ईसार दे तो प्यार को कुछ न विचार कर
अब्दुल क़ादिर सौदागर
ग़ज़ल
तकल्लुफ़ उठते ही 'परवीं' वो ख़ूब खुल खेले
हुआ है शोख़ियों से कितना बे-विक़ार लिहाज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
उड़ा है रफ़्ता रफ़्ता रंग तस्वीर-ए-मोहब्बत का
हुई है रस्म-ए-उल्फ़त बे-विक़ार आहिस्ता आहिस्ता
असलम अंसारी
ग़ज़ल
तुझे ना-पसंद जो थे वही बे-विक़ार रहते
जो अज़ीज़ थे तुझे वो तिरे दर की गर्द क्यूँ हैं
अलीम उस्मानी
ग़ज़ल
है गज़ी गाढ़ा ही 'कैफ़ी' का शिआ'र और विसार
नहीं दरकार है ये अतलस-ओ-क़ाक़ुम मुझ को