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ग़ज़ल
'सफ़ी' को मुस्कुरा कर देख लो ग़ुस्से से क्या हासिल
उसे तुम ज़हर क्यों देते हो जो मरता है शक्कर से
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
नाज़नीं नाज़-आफ़रीं नाज़ुक-बदन नाज़ुक-मिज़ाज
ग़ुंचा-लब रंगीं-अदा शक्कर-दहाँ शीरीं-सुख़न
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
आशिक़ों कूँ इस दो-बाला कैफ़ की बर्दाश्त नईं
ख़त की सब्ज़ी लब की शक्कर साथ मा'जूँ मत करो
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
गुफ़्तम कपोल तेरे गुफ़्ता कि बर्ग-ए-लाला
गुफ़्तम कि बोसा तुझ लब गुफ़्ता कि बह ज़ शक्कर
फ़ाएज़ देहलवी
ग़ज़ल
वक़्त बोसे के मिरा मुँह उस के लब से जूँ जुड़ा
गर्द-ए-ग़म हुई दिल में मीठी जैसे शक्कर का पुड़ा
वली उज़लत
ग़ज़ल
तिरा मिट्टी को मिट्टी के लिए तय्यार करना
उसे शक्कर-भरे लब फूल से रुख़्सार देना
मोहम्मद इज़हारुल हक़
ग़ज़ल
दुनिया में बड़ा शोर है शक्कर-शिकनी का
'शीरीं' जो तख़ल्लुस में हुआ नाम हमारा
नवाब शाहजहाँ बेगम शाहजहाँ
ग़ज़ल
तेरे आगे यार-ए-नौ यार-ए-कुहन दोनों हैं एक
ज़ाग़-ए-ज़िश्त और तूती-ए-शक्कर-शिकन दोनों हैं एक
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
ग़ज़ल
है पियाला शीर का लबरेज़ मह के हाथ में
अब शकर-ख़ंदी से उस में डाल दे तू क़ंद और