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ग़ज़ल
शब में दिन का बोझ उठाया दिन में शब-बेदारी की
दिल पर दिल की ज़र्ब लगाई एक मोहब्बत जारी की
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
सुब्ह तलक अफ़्लाक पे इक कैफ़िय्यत तारी करता हूँ
चाँद को अपनी नज़्म सुना कर शब-बेदारी करता हूँ
औरंग ज़ेब
ग़ज़ल
मीठे गीतों की वो रिस्ना मीठी धुन और मीठे बोल
पूरन-माशी पर आँगन में शब-बेदारी होती थी
जानाँ मलिक
ग़ज़ल
हर रंग-ए-जुनूँ भरने वालो शब-बेदारी करने वालो
है इश्क़ वो मज़दूरी जिस में मेहनत भी वसूल नहीं होती
जमाल एहसानी
ग़ज़ल
अपने सवालों से घबरा कर सब ख़ुद ही रो देते थे
चाहने वालों ने आँखों में शब भर शब-बेदारी की
नसीम निकहत
ग़ज़ल
बड़ी मुश्किल से तोड़े हैं ये मा'मूलात-ए-हिज्र आख़िर
सो इक 'अर्सा हुआ दिन में ही शब-बेदारी करते हैं
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
मोहन सिंह दीवाना
ग़ज़ल
नींद का लुत्फ़ न बेदारी-ए-शब की लज़्ज़त
ज़ह्न में जागते ख़दशात से जी डरता है
सय्यद अब्बास रज़ा तनवीर
ग़ज़ल
बेदारी-ए-शब हो कि हो इक ख़्वाब-ए-पशेमाँ
ये मो'जिज़ा-ए-शाम-ओ-सहर देखते चलिए