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ग़ज़ल
वो सियाह-रंग शमीम-शाम-ए-विसाल की जो नवेद है
इस अलम-गज़ीदा फ़िराक़ में वही ज़ुल्फ़ याद फिर आ गई
नियाज़ हैदर
ग़ज़ल
न मलाल-ए-हिज्र न मुंतज़िर हैं हवा-ए-शाम-ए-विसाल के
हम असीर अपनी ही ज़ात के किसी ख़्वाब के न ख़याल के
असलम महमूद
ग़ज़ल
इन्ही हैरतों में बसर हुई न ख़बर हुई कि सहर हुई
ये तमाम अर्सा-ए-ज़िंदगी कि मुहीत-ए-शाम-ए-विसाल था
आतिफ़ वहीद यासिर
ग़ज़ल
चाँद उस का आसमाँ उस का सर-ए-शाम-ए-विसाल
जिस पे साया हो तिरी ज़ुल्फ़-ए-सितारा-गीर का
सहबा अख़्तर
ग़ज़ल
तेरे सितम की गुफ़्तुगू तेरे करम की जुस्तुजू
सुब्ह-ए-फ़िराक़ भी नहीं शाम-ए-विसाल भी नहीं
नासिर ज़ैदी
ग़ज़ल
उन से छिड़ जाएँगी बातें रंज की शाम-ए-विसाल
क्या ख़बर थी दुश्मन-ए-जाँ आसमाँ हो जाएगा
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
गुलाब-ए-सुर्ख़ से आरास्ता दालान करना है
फिर इक शाम-ए-विसाल-आगीं तुझे मेहमान करना है